V.S Awasthi

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कैसे त्योहार मनाऊँ




मैं कैसे त्योहार मनाऊँ 
पति देव नहीं आये हैं अब तक
मैं कैसे होली खेलूँगी
प्रियतम ने खेली खून की होली
बन्द हो गई उनकी बोली
दुश्मनों को जब वो मार रहे थे
उनके सीने पर लगी थी गोली
उन्होंने रक्त से खेली होली
तब बन्द हुईं थी उनकी बोली
अब मैं कैसे खेलूँगी होली
मेरा तो सिन्दूर पुंछ गया
प्रियतम का मेरा साथ छुट गया
जिनकी आश में  मैं जीवित थी
मेरा अमर सुहाग लुट गया
भारत माँ की रक्षा के हित 
जिसने अपने प्राण तज दिये
उनकी याद में रो ना सकूँ मैं
गर्व से जिसने प्राण तज दिये
ऐसे पिया पे गर्व है मुझको
ऐसे शहीद को भुला ना सकूँ मैं
मैं कैसे त्योहार मनाऊँ
दिल को मैं कैसे समझाऊँ
उनको तो शहीद होना था
मुझको छोड़ के ही जाना था
भारत माँ की रक्षा के हित
उनकी माँ ने उन्हें जना था
ऐसे प्रियतम को शत बार नमन
कोटि कोटि कोटिशः नमन

विद्या शंकर अवस्थी पथिक कल्यानपुर

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3 Comments

Shrishti pandey

17-Mar-2022 04:47 PM

Bahut khoob

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Swati chourasia

17-Mar-2022 03:48 PM

बहुत ही सुंदर रचना 👌

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Gunjan Kamal

17-Mar-2022 02:58 PM

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌🙏🏻

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